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कविता

रहना है अभी प्रेम में तुम्हारे

ओम नागर


आज सुबह-सुबह
जिन भी फूलों ने खोली अपनी पलकें
उन फूलों ने मुस्कराना
तुम्हीं से सीखा होगा प्रिये !

आज सुबह-सुबह
पूरब दिशा से निकला जो सूरज
उसकी मुलायम किरणों ने
छुआ देह को
इस छुअन में तुम्हारें स्पर्श की
सिरहन
पोरों से लिखे हो जैसे तुम्हीं ने
ढाई आखर प्रिये!

आज सुबह-सुबह
ही लगे थे मुझे परी के पंख
यह प्रेम है या कोई जादू की छड़ी
पलकों के पट लगाती
कि अनजान दस्तक की अनुगूँज
कोई सरगम
जिसे दरकार हो किसी लंबे आलाप की
प्यार का कोई भी नग्मा
गुनगुनाओ ना प्रिये!

आज सुबह-सुबह
ही बिसर गया तुम्हें देना
शुभकामनाएँ प्रेम दिवस की
सदियों तक
जन्मों तक
रहना है अभी प्रेम में तुम्हारे
बताओ न
बताओ न
कैसे एक दिवसीय
हो सकता है अपना प्रेम प्रिये !
 


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